भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
:::मोड़ इसमें कई यहदिन हथकड़ियों के:::लम्बा सफ़र है।।बेड़ी में पाँव फँसे।।सुबह-सुबह भी जैसेदेह डूबी हुईकाली रात खड़ी,धानी धान सीइस स्वाधीनजीन सूखीरचीबासी पान-सी।समय मेंमुर्दा जात बड़ी।:::एक कोने में छिपापानी के बाहर भी:::दुर्दिन का डर है।।कोई जाल कसे।।छोटों के दिनआलता रंगबड़े-सीबड़ों के पेटों के,सुए की चोंच-सीभीतर धँसीऊँचे-नीचेदिनों कीयह मोंच-सी।सलाखोंबाहर आखेटों के।:::छाँह के संबंध में भीचीन्ह-चीन्ह कर मारा:::धूप-फर है।।उनके घाव हँसे।।जिनके शासित हमआँख ओठों बीचबैठी सदी-सीभूमंडल के पाखी,ज़िन्दगी हैआसमान में उनकेबाल खोलेनदी-सी।लटकीअपनों की बैसाखी।:::जीने-मरने को कहींताक़त की सत्ता में:::रस्ते का घर है।आदम कहाँ बसे।।
</poem>