|रचनाकार=कुँअर बेचैन
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{{KKCatKavita}<poem>है समय प्रतिकूल माना<br>पर समय अनुकूल भी है। <br>शाख पर इक फूल भी है॥ <br><br>
घन तिमिर में इक दिये की <br>टिमटिमाहट भी बहुत है <br>एक सूने द्वार पर <br>बेजान आहट भी बहुत है <br><br>
लाख भंवरें हों नदी में <br>पर कहीं पर कूल भी है। <br>शाख पर इक फूल भी है॥ <br><br>
विरह-पल है पर इसी में <br>एक मीठा गान भी है <br>मरुस्थलों में रेत भी है <br>और नखलिस्तान भी है <br><br>
साथ में ठंडी हवा के <br>मानता हूं धूल भी है। <br>शाख पर इक फूल भी है॥ <br><br>
है परम सौभाग्य अपना <br>अधर पर यह प्यास तो है <br>है मिलन माना अनिश्चित <br>पर मिलन की आस तो है <br><br>
प्यार इक वरदान भी है <br>प्यार माना भूल भी है। <br>शाख पर इक फूल भी है॥ <br><br>