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आग की लपटों में था मकान मेरा / निश्तर ख़ानक़ाही
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13:57, 2 जुलाई 2013
किसे ख़तूत लिखूं, हाले-दिल सुनाउँ किसे
न कोई हर्फ़-शनासा* न हमज़माब* मेरा
</poem>
1- खुद-अज़ीयती--अपने आप को कष्ट देना
Sharda suman
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