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इक नज़्म /गुलज़ार

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|संग्रह=रात पश्मीने की / गुलज़ार
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ये राह बहुत आसान नहीं,
जिस राह पे हाथ छुडा छुड़ा कर तुम
यूँ तन तन्हा चल निकली हो
इस खौफ़ से शायद राह भटक जाओ ना कहीं
और तुमको ज़रूरत पड़ जाए,
इक नज़्म की ऊँगली थाम के वापस आ जाना!
</poem>
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