भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
}} {{KKVID|v=j9aUBccI3fUNvTwbTj4krM}}
<poem>
बांची बाँची तो थी मैंने खण्डहरों में लिखी हुई इबारत
लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना
और अब लगता है कि बच नहीं सकता मेरा भी इतिहास बन जाना
कि बांचा बाँचा तो जाउंगा जाउँगा लेकिन जी न पाउंगा
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,132
edits