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हुआ बेघर, कुछ कीजिए ।<br>{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'}}
हुआ बेघर, कुछ कीजिए ।<br> भटकता है दर–बदर ,कुछ कीजिए ।<br>
फ़रेब के सैलाब से न बच सके <br>
परेशान है रहबर ,कुछ कीजिए ।<br>
रहनुमा बनकर जो कल गले मिले।<br>
वे लिये आज ख़ज़र,कुछ कीजिए ।<br>
बेहया हो गया मौसम बहार का ।<br>
मुश्किल है बहुत सफ़र,कुछ कीजिए ।<br>
ख़ुदा! तू भी परेशान ही होगा<br>
तेरा ख़ौफ़ बेअसर ,कुछ कीजिए ।<br>