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Kavita Kosh से
अधूरा है!
इसीलिए सुन्दर है!
दुधिया दांतों दाँतों तोतला बोल
बुनाई हाथों के स्पर्श का अहसास!
ऊनी धागों में लगी अनजानी गांठेंगाँठें, उचटने
सिलाई के टूटे-छूटे धागे
चित्र में उभरी, बे-तरतीब रंगतें-रेखाएं
शायद इसीलिए
अभावों में भाव अधिक खिलते हैं,
चुभते आलते सालते और खलते हैं
एक टीस की अबूझ स्मृति