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नाराशंसी / गजेन्द्र ठाकुर

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पसरि जाएत सगर विश्वमे गायत्री नाराशंसीक संग
से ओ
कविक कविताकेँ कविता के छन्दक रसमे रस मे राखि दैत छथि
बलि दऽ दैत छथि
कविक कविताक छन्दक रसक बलि
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