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तोप / वीरेन डंगवाल

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|संग्रह=इसी दुनिया में / वीरेन डंगवाल
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कम्पनी बाग़ के मुहाने पर
 
धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल
 
विरासत में मिले
 
कम्पनी बाग की तरह
 
साल में चमकायी जाती है दो बार
 
सुबह-शाम कम्पनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी
 
उन्हें बताती है यह तोप
 
कि मैं बड़ी जबर
 
उड़ा दिये थे मैंने
 
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के छज्जे
 
अपने ज़माने में
 
अब तो बहरहाल
 
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो
 
तो उसके ऊपर बैठकर
 
चिड़ियाँ ही अकसर करती हैं गपशप
 
कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं
 
ख़ासकर गौरैयें
 
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
 
एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द !
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