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|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर'
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दुश्मनी हमसे की ज़माने ने
जो जफ़ाकार तुझसा यार किया
दुश्मनी हमसे की ज़माने ने<br>ये तवाहुम का कारख़ाना हैयाँ वही है जो जफ़ाकार तुझसा यार ऐतबार किया<br><br>
ये तवाहुम का कारख़ाना है<br>हम फ़क़ीरों से बे-अदाई क्यायाँ वही है आन बैठे जो ऐतबार तुमने प्यार किया<br><br>
हम फ़क़ीरों से बेसद रग-अदाई क्या<br>ए-जाँ को ताब दे बाहमआन बैठे जो तुमने प्यार तेरी ज़ुल्फ़ों का एक तार किया<br><br>
सद रग-ए-जाँ को ताब दे बाहम<br>तेरी ज़ुल्फ़ों का एक तार किया<br><br> सख़त काफ़िर था जिसने पहले "मीर"<br>
मज़हब-ए-इश्क़ इख़्तियार किया
</poem>
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