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आ उठ चल, बाहर जीवन है / मानोशी

129 bytes added, 03:21, 29 सितम्बर 2013
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मानोशी|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGeet}}<poem>जीवन विषाद नहीं है, सुख है,
है मन का यह भ्रम, जो दुख है,
मधुर स्मृति से आलिंगन-बद्ध
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