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पंथ जीवन का चुनौतीदे रहा है हर कदम पर,आखिरी मंजिल नहीं होतीकहीं भी दृष्टिगोचर,धूलि में लद, स्वेद में सिंचहो गई है देह भारी,कौन-सा विश्वास मुझकोखींचता जाता निरंतर?-
पंथ क्या, पंथ की थकान क्या,
::स्वेद कण क्या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
एक भी संदेश आशाका नहीं देते सितारे,प्रकृति ने मंगल शकुन पथमें नहीं मेरे सँवारे,विश्व का उत्साहवर्धकशब्द भी मैंने सुना कब,किंतु बढ़ता जा रहा हूँलक्ष्य पर किसके सहारे?-
विश्व की अवहेलना क्या,
::अपशकुन क्या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
चल रहा है पर पहुँचनालक्ष्य पर इसका अनिश्चित,कर्म कर भी कर्म फल सेयदि रहा यह पांथ वंचित,विश्व तो उस पर हँसेगाखूब भूला, खूब भटका!किंतु गा यह पंक्तियाँ दोवह करेगा धैर्य संचित-
व्यर्थ जीवन, व्यर्थ जीवन,
::की लगन क्या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!
अब नहीं उस पार का भीभय मुझे कुछ भी सताता,उस तरु के लोक से भीजुड़ चुका है मेरा नाता,मैं उसे भूला नहीं तोवह नहीं भूली मुझे भी,मृत्यु-पथ पर भी बढ़ूँगामोद से यह गुनगुनाता-अंत यौवन, अंत जीपनजीवन::का मरण क्या,
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!