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अन्तरंग / श्यामनन्दन किशोर

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|रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>ये तिरस्कार, ये पुरस्कार<br>दोनों ही माता के दुलार ।<br><br>दुलार।
दोनों मिलते हैं अकस्मात<br>दोनों लाते हैं अश्रुपात<br>दोनों में साँसों का चढ़ाव<br>दोनों में साँसों का उतार ।<br><br>उतार।
ये तिरस्कार मरू की ज्वाला<br>जो रचती मेघ-खण्ड-माला<br>ये तिरस्कार तीव्रानुभूति<br>रचती ज्वलन्त साहित्यकार ।<br><br>साहित्यकार।
ये पुरस्कार कण्टकाकीर्ण<br>साधना बनाते ज़रा-जीर्ण<br>दो चार बढ़ाते आलोचक<br>दो चार बनाते समाचार ।<br><br>समाचार।
ये तिरस्कार ये पुरस्कार<br>दोनों ही माता की पुकार<br>दोनों में झंकृत होता है<br>माँ की वीणा का तार-तार ।<br>तार।<br/poem>
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