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दीप पर अपने शिखा को / मानोशी

131 bytes added, 04:54, 31 अक्टूबर 2013
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मानोशी |अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatGeet}}<poem>शमन के अंतिम चरण में थरथराती आस क्यों हो
दीप को अपने शिखा पर प्राण का विश्वास तो हो
पास हो या दूर हो उस साँस पर अधिकार वो हो
दीप को अपने शिखा पर प्राण का विश्वास तो हो</poem>
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