|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}<poem>अंधियारा जिससे शरमाये, <br>उजियारा जिसको ललचाये,<br> ऎसा ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम <br>मेरा गीत दिया बन जाये! <br><br>
इतने छलको अश्रु थके हर <br>राहगीर के चरण धो सकूं, <br>इतना निर्धन करो कि हर <br>दरवाजे पर सर्वस्व खो सकूं <br><br>
ऎसी पीर भरो प्राणों में <br>नींद न आये जनम-जनम तक, <br>इतनी सुध-बुध हरो कि <br>सांवरिया खुद बांसुरिया बन जायें! <br><br>
ऎसा ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम <br>मेरा गीत दिया बन जाये!! <br><br>
घटे न जब अंधियार, करे <br>तब जलकर मेरी चिता उजेला, <br>पहला शव मेरा हो जब <br>निकले मिटने वालों का मेला <br><br>
पहले मेरा कफन पताका <br>बन फहरे जब क्रान्ति पुकारे, <br>पहले मेरा प्यार उठे जब <br>असमय मृत्यु प्रिया बन जाये! <br><br>
ऎसा ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम <br>मेरा गीत दिया बन जाये!! <br><br>
मुरझा न पाये फसल न कोई <br>ऎसी खाद बने इस तन की, <br>किसी न घर दीपक बुझ पाये <br>ऎसी जलन जले इस मन की <br><br>
भूखी सोये रात न कोई <br>प्यासी जागे सुबह न कोई, <br>स्वर बरसे सावन आ जाये <br>रक्त गिरे, गेहूं उग आये! <br><br>
ऎसा ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम <br>मेरा गीत दिया बन जाये!! <br><br>
बहे पसीना जहां, वहां <br>हरयाने लगे नई हरियाली, <br>गीत जहां गा आय, वहां <br>छा जाय सूरज की उजियाली <br><br>
हंस दे मेरा प्यार जहां <br>मुसका दे मेरी मानव-ममता <br>चन्दन हर मिट्टी हो जाय <br>नन्दन हर बगिया बन जाये। <br><br>
ऎसा ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम <br>मेरा गीत दिया बन जाये!! <br><br>
उनकी लाठी बने लेखनी <br>जो डगमगा रहे राहों पर, <br>हृदय बने उनका सिंघासन <br>देश उठाये जो बाहों पर <br><br>
श्रम के कारण चूम आई <br>वह धूल करे मस्तक का टीका,<br> काव्य बने वह कर्म, कल्पना- <br>से जो पूर्व क्रिया बन जाये! <br><br>
ऎसा ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम <br>मेरा गीत दिया बन जाये!! <br><br>
मुझे श्राप लग जाये, न दौङूं <br>जो असहाय पुकारों पर मैं, <br>आंखे ही बुझ जायें, बेबेसी <br>देखूं अगर बहारों पर मैं <br><br>
टूटे मेरे हांथ न यदि यह <br>उठा सकें गिरने वालों को <br>मेरा गाना पाप अगर <br>मेरे होते मानव मर जाय! <br><br>
ऎसा ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम <br>मेरा गीत दिया बन जाये!!<br><br/poem>