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हमारे कल की ख़ुदा जाने शक़्ल क्या होगीमुबारक़ हो नया साल</div>
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रचनाकार: [[दास दरभंगवीनागार्जुन]]
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लोटा भर पानी दुपहर फलाँ-फलाँ इलाके में गुड़ के संग पिला दो जीपड़ा है अकालचार शायरी लेकर मुझको मछली भात खिला दो जीखुसुर-पुसुर करते हैं, खुश हैं बनिया-बकालछ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकालअनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !
पायल कंगन कनबाली सब ले लो, ए डाक्टर साहेब हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल...अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल !किसी तरह मेरे बेटे को चंगा करो, जिला दो जीपाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल...थामेंगे डालरी कमन्द !
बरसों से पहना करते हैं वही एक पतलून-कमीजबत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मरालअपने पैसे पूछिए चलकर वोटरों से मुझको तुम कपड़े नये सिला दो जीमिजाज का हालमिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया सालगाँव छोड़ कर शहर और परदेस चले जाते हैं लोगलोगों को अपने घर अब तो बाँटिए मित्रों में ही कोई काम दिला दो जी सड़कें पानी बिजली रोटी रोज़गार का हाल बुराबरगद जैसी जमी हुई सत्ता को जरा हिला दो जीकलाकन्द !
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