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चोटी / हरिऔध

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जो समय के साथ चल पाते नहीं। 
टल सकी टाले न उन की दुख-घड़ी।
 
छीजती छँटती उखड़ती क्यों नहीं।
 
जब कि चोटी तू रही पीछे पड़ी।
निज बड़ों के सँग बुरा बरताव कर।
 
है नहीं किस की हुई साँसत बड़ी।
 
क्यों नहीं फटकार सहती बेहतर।
 
जब कि चोटी मूँड़ के पीछे पड़ी।
</poem>
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