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|संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं / केदारनाथ अग्रवाल
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मशाल का बेटा धुआँ,
 
:::गर्व से गगन में गया,
 
शून्य में खोया
 कोई नहीं रोया ।रोया।
मशाल की बेटी आग
 
:::यहीं धरती पर रही,
 
चूल्हे में आई
 नसों में समाई ।समाई।</poem>
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