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|संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं / केदारनाथ अग्रवाल
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आवरण के भीतर है एक आवरण और
भीतर के भीतर है एक आवरण और
भीतर के भीतर के भीतर है
:::एक आवरण और
निर्विकार निरावरण दर्पण का,
जिसमें सब कूदते समाए चले जाते हैं ।हैं।</poem>