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हमारे मालदार / हरिऔध

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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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<poem>
क्या कहें हाल मालदारों का।
माल से है छिनाल घर भरता।
काढ़ते दान के लिए कौड़ी।
है कलेजा धुकड़ पुकड़ करता।

किस तरह तब मान की मोहरें मिलें।
उलहती रुचि बेलि रहती लहलही।
देख कौड़ी दूर की लाते हमें।
जब मची हलचल कलेजे में रही।
</poem>
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