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10:34, 4 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेमचन्द गांधी
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<poem>
हमारी भाषा में बहुत कम हैं
सांत्वना के शब्द
किसी भी दिवंगत के परिजनों को
हम सिर्फ मौन से ही बंधाते हैं ढाढ़स
शोकसभा के मौनकाल में हम
नहीं बुदबुदाते किसी ईश्वर का नाम.
</poem>
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