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06:46, 7 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लालसिंह दिल
|अनुवादक=सत्यपाल सहगल
|संग्रह=
}}
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<poem>
वह
साँवली औरत
जब कभी बहुत खुशी से भरी
कहती है –
``मैं बहुत हरामी हूं!’’
वह बहुत कुछ झोंक देती है
मेरी तरह
तारकोल के नीचे जलती आग में
मूर्तियाँ
किताबें
अपनी जुत्ती का पाँव
बन रही छत
और
ईंटें ईंटें ईंटें।
</poem>