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07:16, 22 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विपिन चौधरी
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<poem>
कहीं तो दर्ज होंगे मेरे सपने
मेरे प्रतिरोध के सरकंडे
विरोध के तीर-कमान
भटकेगा कोई मेरे इतिहास को जानने पहचानने की तड़प में
तब
निकाल लाएगा कोई पन्डा
मेरे नाम का एक ताम्रपत्र
लाल सुतली से बांध रखे हजारों ताम्रपत्रों में से ढूंढ़ कर
मेरा गोत्र, मेरा कुल खंगालेगा
मेरी पहचान की तलाश में
लाख कच्चे-पक्के पापड़ बेल
दिन और रात एक कर देगा
यही नामुराद पहचान
जो मुझे इस कदर परेशान कर रही है
कि इसे मैं गली के मोड़ पर बैठे काने कुत्ते को
न करने को भी तैयार हूँ
</poem>