Changes

{{KKRachna
|रचनाकार=पद्माकर
}}{{KKCatPad}}<poem> औरे भांति कुंजन में गुंजरत भौर भीर , :::औरे भांति बौरन के झौरन के ह्वै गए. कहै ‘पदमाकर’ सु औरे भांति गलियानि , :::छलिया छबीले छैल औरे छबि छ्वै गए .  
औरे भांति बिहँग समाज में आवाज होति,
:::अबैं ऋतुराज के न आजु दिन द्वै गए . औरे रस,औरे रीति औरे राग औरे रंग , :::औरे तन औरे मन ,औरे बन ह्वै गए .</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,141
edits