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42
अब तक दु:ख झेला है
छोड़ नहीं जाना
मन निपट अकेला है ।
43
यूँ मीत अनेक रहे
मन को जो समझे
बस तुम ही एक रहे ।
44
हम याद न आएँगे
जिस दिन खोजोगे
फिर मिल ना पाएँगे ।
45
तुम हमसे दूर हुए
जितने सपने थे
सब चकनाचूर हुए ।
46
उनको सन्ताप हुआ
अनजाने हमसे
लगता था पाप हुआ ।
47
बस्ती में देर हुई
पथ है अनजाना
उम्मीदें ढेर हुई ।
48
हमको सब छोड़ गए
रुकता कौन यहाँ !
तुम नाता तोड़ गए ।
49
आवाज़ नहीं सुनते
यार हुए बहरे
अब अवगुण ही गुनते ।
50
घर-द्वार सभी छूटा
सपनों-सा पाला
संसार यहाँ लूटा ।
51
आँखों में आ घिरता
चन्दा -सा माथा
अब सपनों में तिरता ।
52
भावों में पलते हो
बस्ती के दीपक !
रजनी भर जलते हो ।
53
सागर तर जाएँगे
पर इतना बोलो-
तुमको कब पाएँगे ?
<poem>