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अंदेशे / कैफ़ी आज़मी

No change in size, 05:09, 10 मई 2014
अपने पहले ही घरोंदे को जो ढाया होगा
दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाये होँगेहोंगेअश्क आँखों ने पिये और न बहाये होँगेहोंगेबन्द कमरे में जो ख़त मेरे जलाये होँगेहोंगे
इक-इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा
हर तरफ़ मुझ को तड़पता हुआ पाया होगा
बेमहल छेड़ पे जज़्बात उबल आये होँगेहोंगेग़म पशेमा तबस्सुम में ढल आये होँगेहोंगेनाम पर मेरे जब आँसू निकल आये होँगेहोंगे
सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा
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