1,222 bytes added,
05:38, 16 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=छीतस्वामी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
जय जय श्री सूरजा कलिन्द नन्दिनी।
गुल्मलता तरु सुवास कुंद कुसुम मोद मत्त, गुंजत अलि सुभग पुलिन वायु मंदिनी॥१॥
हरि समान धर्मसील कान्ति सजम जलद नील, कटिअ नितंब भेदत नित गति उत्तंगिनी।
सिक्ता जनु मुक्ता फल कंकन युत भुज तरंग कमलन उपहार लेत पिय चरन वंदिनी॥२॥
श्री गोपेन्द्र गोपी संग श्रम जल कन सिक्त अंग अति तरंगिनी रसिक सुर सुफंदिनी।
छीतस्वामी गिरिवरधर नन्द नन्दन आनन्द कन्द यमुने जन दुरित हरन दुःख निकंदिनी ॥३॥
</poem>