581 bytes added,
05:47, 16 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=छीतस्वामी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
हमारे श्री विट्ठल नाथ धनी ।
भव सागर ते काढे कृपानिधी राखे शरन अपनी ॥१॥
रसना रटत रहत निशिवासर शेष सहस्त्र फनी ।
छीतस्वामी गिरिधरन श्री विट्ठल त्रिभुवन मुकुट मनी ॥२॥
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader