640 bytes added,
10:08, 16 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=परमानंददास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
चैत्र मास संवत्सर परिवा बरस प्रवेस भयो है आज।
कुंज महल बैठे पिय प्यारी लालन पहरे नौतन साज॥१॥
आपुही कुसुम हार गुहि लीने क्रीडा करत लाल मन भावत।
बीरी देत दास परमानंद हरखि निरखि जस गावत॥२॥
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader