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11:57, 25 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
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<poem>
ओठों को बोलने से पहले
शब्द का अर्थ चाहिए।
ऊँगलियों को स्पर्श से पहले
आवेग की गति चाहिए।
ह्रदय को धड़कने से पहले
देह चाहिए।
पाँव को चलने से पहले
रास्ता चाहिए।
रास्ते से पहले तक
घर जैसी आत्मीय मंज़िल चाहिए।
मंज़िल से पहले
जीवन चाहिए।
जीवन से पहले ज़िंदगी की जरूरत चाहिए।
जरूरत से पहले जीवन की ज़िंदगी चाहिए।
जैसे जीने के लिए प्यार का विश्वास
और उसकी शक्ति चाहिए;
जैसे बीज को पेड़ बनने से पहले
धरती, सूरज और पानी चाहिए;
वैसे ही अपने से पहले
मुझे तुम चाहिए।
तुम्हारे तुम से ही
मेरा 'मैं' बनेगा
तुममें जीने के लिए
तुमसे जीने के लिए।
</poem>