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शब्दाशीष / पुष्पिता

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मैं
तुम्हारे ओठों का वाक्य हूँ
ह्रदय की भाषा का सर्वांग
तुम्हारे स्पर्श ने रची है
प्यार की देह
जो बोलती है मेरे भीतर
तुम्हारे ही शब्द बनकर

आँसू
पोंछते हैं अकेलेपन के निशान
कि कल को कहीं
तुम्हारे साथ होने पर भी
लौट न पड़े अकेलापन।

आँसू की स्याही से
शब्दों में रचती हूँ ईश्वर
और अपने ईश्वर में
गढ़ती हूँ आस्था का ईश्वर
जिसकी धड़कनों के भीतर
सुना है ईश्वर का संदेश
प्रेम के शब्दों में …।
</poem>
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