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|रचनाकार=पुष्पिता
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}}
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<poem>
चाँद ने
अपना कोई
घर नहीं बनाया
दीवारों से बाहर
रहने के लिए।
सूरज
मकानों से
बाहर रहता है
दीवारों को
तपाने और पिघलाने के लिए
प्रकृति में सृष्टि के लिए।
चाँद
वृक्षों की पात हथेली की मुट्ठी में
अपनी रोशनी को
बनाकर रखता है सितारा
चाँद
घरों के बाहर
अपनी रोशनी से
आवाज़ देता है कि
अँधेरे में
मेरी उजली चमक को देखो
लगता है
मैंने
श्यामपट्ट
खड़िया से लिखी है
ईश्वर की उजली सृष्टि
सूर्य के अस्त होने पर
अंधेरों के खिलाफ़।
</poem>
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चाँद ने
अपना कोई
घर नहीं बनाया
दीवारों से बाहर
रहने के लिए।
सूरज
मकानों से
बाहर रहता है
दीवारों को
तपाने और पिघलाने के लिए
प्रकृति में सृष्टि के लिए।
चाँद
वृक्षों की पात हथेली की मुट्ठी में
अपनी रोशनी को
बनाकर रखता है सितारा
चाँद
घरों के बाहर
अपनी रोशनी से
आवाज़ देता है कि
अँधेरे में
मेरी उजली चमक को देखो
लगता है
मैंने
श्यामपट्ट
खड़िया से लिखी है
ईश्वर की उजली सृष्टि
सूर्य के अस्त होने पर
अंधेरों के खिलाफ़।
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