1,312 bytes added,
10:55, 2 जून 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
(होरी काफी-ताल दीपचन्दी)
और सब भूल भले ही, श्रीहरिनाम न भूल॥
श्रीहरिनाम सुधामय सब के हित, सब के अनुकूल।
श्रीहरिनाम-भजन तें पहुँचत भव-सागर पर-कूल॥
रोग, सोक, संताप, पाप सब, जैसे सूखी तूल।
भगवन्नाम प्रबल पावक तें जरैं सकल जड़-मूल॥
जिन्ह हरिनाम-भजन नहिं कीन्हों जीवन तिन को धूल।
भक्ति रसाल मिलै नहिं कबहूँ, बोये विषय-बबूल॥
श्रीहरिनाम भयो जिनके मन जग-जीवन को मूल।
तिन्ह को धन्य जगत महँ जीवन पातक-पथ-प्रतिकूल॥
</poem>