861 bytes added,
09:39, 21 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा)
चाह तुम्हारी ही हो प्यारे! नित्य-निरन्तर मेरी चाह।
चाह न रहे अलग कुछ मेरी, नहीं किसीकी हो परवाह॥
चलता रहूँ निरन्तर, प्यारे! केवल एक तुहारी राह।
बिगड़े-बने जगत्का कुछ भी, कहूँ निरन्तर ‘प्यारे! वाह’॥
</poem>