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समय का जल / महेश उपाध्याय

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थाह तक छूने नहीं देता
समय का जल
इस तरह दम घोंटती है
ये परिस्थितियाँ
बदल जाती हैं
सुबह से पूर्व ही तिथियाँ
दोपहर है भीड़ का जंगल
थाह तक छूने नहीं देता
समय का जल ।
</poem>
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