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<poem>
(राग माँड़-ताल कहरवा)

रहै न रंचक राग-रति, माया-ममता-मोह।
हो निमग्र मन सुधानिधि-पदानन्द-संदोह॥
मन-मिलिन्द रहै पान-रत पद-पंकज मकरन्द।
नित्य निरंकुश निशि-दिवस निरवधि निलि निर्द्वन्द॥
रहै न मन ही मन बन्यौ, बनै तुहारौ यन्त्र।
तुम यन्त्री फ़ूँको सदा निज मनमाने मन्त्र॥
</poem>
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