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10:43, 28 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
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<poem>
शंख फूंकता रहा हमें
.--रूह का क़ातिल
अनाम
अन्यत्र से
एक स्वप्न की तरह ऐन्द्रजालिक
वह अपना रहस्य बनाये रखती है
.--मृत्यु
प्रकृति का ऋण है
</poem>
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