Changes

पीठ कोरे पिता-14 / पीयूष दईया

690 bytes added, 10:54, 28 अगस्त 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पीयूष दईया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं शर्मसार हूं कि सारे दांव जीत गया
यहां तक कि सिक्कों को मेरी जेब से
बाहर तक आने की ज़हमत नहीं उठानी पड़ी
शुक्रगुज़ार हूं यह कहना न होगा

हार के आइने से बने मुझ पर
आप दिखते रहे
और जीत न सके

मुझ में भी।
पिता--
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits