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|रचनाकार=प्रियदर्शन
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}}
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<poem>
सच बोलने के लिए जितना साहस चाहिए
झूठ बोलने के लिए उससे ज्यादा साहस चाहिए
आखिर पकड़े जाने का ख़तरा तो झूठ बोलने वाले को उठाना पड़ता है।
सच बोलने वाले को लगता है, सिर्फ वही सच्चा है
जबकि झूठ बोलने वाला जैसे मान कर चलता है, सब उसकी तरह झुठे हैं
इस लिहाज से देखें तो झूठ सच के मुकाबले ज़्यादा लोकतांत्रिक होता है।
सच इकहरा होता है, झूठ रंगीन
सच में बदलाव की गुंजाइश नहीं होती, झूठ में भरपूर लचीलापन होता है
कहते हैं, झूठ के पांव नहीं होते, लेकिन उसके पंख होते हैं
लेकिन कहते यह भी हैं
दलीलों की ज़रूरत झूठ को पड़ती है
सच को नहीं।
</poem>
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सच बोलने के लिए जितना साहस चाहिए
झूठ बोलने के लिए उससे ज्यादा साहस चाहिए
आखिर पकड़े जाने का ख़तरा तो झूठ बोलने वाले को उठाना पड़ता है।
सच बोलने वाले को लगता है, सिर्फ वही सच्चा है
जबकि झूठ बोलने वाला जैसे मान कर चलता है, सब उसकी तरह झुठे हैं
इस लिहाज से देखें तो झूठ सच के मुकाबले ज़्यादा लोकतांत्रिक होता है।
सच इकहरा होता है, झूठ रंगीन
सच में बदलाव की गुंजाइश नहीं होती, झूठ में भरपूर लचीलापन होता है
कहते हैं, झूठ के पांव नहीं होते, लेकिन उसके पंख होते हैं
लेकिन कहते यह भी हैं
दलीलों की ज़रूरत झूठ को पड़ती है
सच को नहीं।
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