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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=काका हाथरसी|अनुवादक=|संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी}}{{KKCatKavita}}<poem>सफल राजनीतिज्ञ वह जो जन गण में व्याप्त ।
जिस पद को वह पकड़ ले कभी न होय समाप्त ॥
कभी न होय समाप्त, घुमाए पहिया ऐसा ।
पैसा से पद मिले, मिले फिर पद से पैसा ॥
कह काका, यह क्रम न कभी जीवन-भर टूटे । नेता वही सफल और सब नेता झूठे ॥झूठे॥</poem>