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छाया अंचल की दे न सकी
 
 
पा पाँच तनय फूली फूली, दिन - रात बड़े सुख में भूली
 
कुन्ती गौरव में चूर रही, मुझ पतित पुत्र से दूर रही
 
क्या हुआ की अब अकुलाती है
 
किस कारण मुझे बुलाती है
तप त्याग शील, जप योग दान, मेरे होंगे मिट्टी समान
लोभी लालची कहलाऊँगाकहाऊँगा
किसको क्या मुख दिखलाऊँगा?
यह बीच नदी की धारा है, सूझता न कूल-किनारा है
ले लील भले याग यह धार मुझे,
लौटना नहीं स्वीकार मुझे
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