भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
1
प्यार में महानगरों को छोडा हमने
और कस्बों की राह ली
अमावस को मिले हम और
आंखों के तारों की रोशनी में
नाद के चबूतरे पर बैठे हमने
दूज के चांद का इंतजार किया
और भैंस की सींग के बीच से
पश्चिमी कोने पर डूबते चांद को देखा
हमने सुख की तरह
एक दूसरे का हाथ हाथेां में लिया
और परवाह नही की बटोहियों की
2
कुछ ज्यादा ही
बर्तन मंजे प्यार में
पानी कुछ ज्यादा ही पिया हमने
कई कई बार बुहारा घर को
सबेरे जगे और देर से सोये हम
एक दूसरे को मार दुनिया जहान के
किस्से सुनाये हमने
और इतना हंसे
कि आस पास
प्यार के सुराग में बैठे लोग
भाग गये बोर होकर
3
प्यार में हमने
सबसे उंची चोटी चढी पहाड की
वहां हमने देखा कि पेड
कटकर शहर की राह ले रहे थे
वहां हमें दो सियार मिले
सियारों और पत्थरों को हमने
हरियाली और प्रेम के गीत सुनाये
और धीरे धीरे
उतर आये तलहटियों में।
1997
</poem>