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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल
}}
{{KKCatGhazal}}<poem>
जाने यह किससे क्या लगा बैठा
वो चांद से उतरा तो तारों में जा बैठा।
हमने सोचा था क्या के ऐसा होगा
जो पास था वो मुफ़लिस का ख़्वाब बना बैठा।
होशो-हवाश के मिरे क्या कहने
सिराने मीर था जो पैताने कबीर जा बैठा।
समझाएँ कैसे किसे क्या समझाएँ
बात आई थी दिल में के ज़बाँ कटा बैठा।
फिरा जो सिर तो ख़ाब से जी लगा बैठा
ख़ाब तो ख़ाब था ये जा के वो जा बैठा।
</poem>