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<poem>
राग भटियार, तीन ताल 4.9.1974
प्रीति-रीति की सार सलौनी, वेद-विदित गुनखानी।
मेरी एकमात्र जीवननिधि रस-रंजिनि, रसखानी॥1॥
स्याम-चन्द्र की चटुल<ref>चटोरी</ref> चकोरी, अति भोरी जग जानी।ताके पद पंकज की अलिनी ललिनी<ref>लुब्धा, लोलुप</ref> मैं मन-मानी॥2॥
कलित कान्ति ताकी लखि सहमहिं रती-सती ब्रह्मानी।
अति उदार, रस-सार, रँगीली, उमा-रमा वरदानी॥3॥