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कहो तो लौट जाते हैं / वसी शाह
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09:11, 29 नवम्बर 2014
मेरे बारे न कुछ सोचो…
मुझे तय करना आता है रसन का, दार का रस्ता…
ये आसिबों<ref>
बेचैनी
डरावना
</ref> भरा रस्ता ये अंधी घार<ref>खोह </ref> का रस्ता
तुम्हारा नर्म-ओ-नाज़ुक हाथ हो अगर मेरे हाथों में,
तो मैं समझूँ के जैसे दो जहाँ है मेरी मुट्ठी में
Sharda suman
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