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Kavita Kosh से
दिल दस्त-ए-तमन्ना का गिरफ़्तार हुआ
इक शौक़-ए-तलब सा मुझे तलवार हुआ है
शहर-ए-हवस-आलूद से बेज़ार हुआ है
ये जज़्ब जो आमादा-ए-पैकार हुआ है
मैं वस्ल की शब रक़्स-ए-ग़म-आमेज़ करूँगी
इक दर्द मिरा हम-षबशब-ए-बेदार हुआ है
इक दर्जा नषा नशा कब है कि गुमराह रहूँ मैंये होष होश मिरा दुष्मनदुश्मन-ए-दुष्वार दुश्वार हुआ है
टूटी है ये कष्ती कश्ती तो मिरे साथ सफ़र को
वो जान-ए-मसाफ़त मिरा तय्यार हुआ है
मैं आईना-ए-दिल को सर-ए-ख़्वाब ही तोडूँ
इस दष्तदश्त-ए-षनासा शनासा का ये इसरार हुआ है
कुछ काम कब आया है मिरा गिर्या-ए-षब शब भी
इसराफ़-ए-दिल-ओ-जाँ मिरा बे-कार हुआ है
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