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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
म्हारलै सैर में
धरम रै नांव
लोई नीं बैवाइजै
हंसता खेलता घर
नीं उजाड़ीजै।
म्हारै सैर में
हवा में गंूजती अजान
अर चिरता भजन
अडीक राखै
एक दूसरै री
अर कदे कदे तो
रिळमिळ’र हुय जावै
एकाकार।
म्हे सिंज्या री
अजान सुण’र करां
मिन्दर में दीया बŸाी।
माथै ने खाली कर’र
आ कदे
म्हारलै सैर।
</poem>