भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
जयति प्रेम-निधि ! जिसकी करूणा नौका पार लगाती है
जयति महासंगीत ! विष्वविश्व-वीणा जिसकी ध्वनि गाती हैकादम्बनी कादम्िबनी कृपा की जिसकी सुधा-नीर बरसाती है भव-कानन की धरा हरित हो जिससे षोभा शोभा पाती है
निर्विकार लीलामय ! तेरी षक्ति शक्ति न जानी जाती है
ओतप्रोत हो तो भी सबकी वाणी गुण-गुना गाती है
प्रभु ! तेरे चरणों में पुलकित होकर प्रणति जनाती है
</poem>