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क्या हुआ गर मर गए अपने वतन के वास्ते,
बुलबुलें कुर्बान होती हैं चमन के वास्ते।
हिंदुओं को चाहिए अब क़स्द काबे का करें,
और फिर मुस्लिम बढ़ें गंगो-जमन के वास्ते!
रचनाकाल: सन 1932
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