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बात बनती नहीं / हनीफ़ साग़र
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03:30, 15 मई 2015
<poem>
बात बनती नहीं ऐसे हालात में
मैं भी
जज़्बातमें
जज़्बात में
, तुम भी जज़्बात में
कैसे सहता है मिलके बिछडने का ग़म
आप गुम हो गए किन ख़यालात में
दिल में उठते हुए वसवसों
<ref>तरंग</ref>
के सिवा
कौन आता है `साग़र' सियह रात में
{{KKMeaning}}
</poem>
Sharda suman
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